प्रथम खंड
:
8.
हिंदुस्तानियों ने क्या किया ?
3.
इंग्लैंड में कार्य
पाठक पिछले प्रकरणों में यह देख चुके हैं कि हिंदुस्तानी कौम ने अपनी स्थिति
को सुधारने के लिए कुछ प्रयत्न किए और अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाई। जिस प्रकार
दक्षिण अफ्रीका में कौम ने अपने सारे अंगों का विकास करने का यथाशक्ति प्रयत्न
किया, उसी प्रकार हिंदुस्तान और इंग्लैंड से जितनी मदद मिल सकती थी उतनी पाने
का प्रयत्न भी उसने किया। हिंदुस्तान के कार्य के बारे में मैं थोड़ा लिख चुका
हूँ। अब यह बताना चाहिए कि इंग्लैंड से मदद लेने के बारे में क्या किया गया?
सबसे पहले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ब्रिटिश कमेटी के साथ संबंध जोड़ना
आवश्यक था। इसलिए हिंदुस्तान के दादा श्री दादाभाई नौरोजी को और ब्रिटिश कमेटी
के अध्यक्ष सर विलियम वेडरबर्न को सारी घटनाओं का ब्योरेवार वर्णन करने वाले
साप्ताहिक पत्र लिखे जाते थे। और जब-जब अरजियों की नकलें वगैरा भेजने का मौका
आता तब-तब कमेटी के डाक-खर्च में और सामान्य खर्च में मदद करने के लिए कम से
कम 10 पौंड की रकम भेजी जाती थी।
यहाँ मैं दादाभाई नौरोजी का एक पवित्र संस्मरण दे दूँ। दादाभाई ब्रिटिश कमेटी
के अध्यक्ष नहीं थे। फिर भी हमने सोचा कि उनके द्वारा ही कमेटी को पैसे भेजना
उचित होगा, और वे हमारी ओर से भेजे हुए पैसे कमेटी के अध्यक्ष को दे दें।
परंतु पहली ही बार हमने जो पैसे भेजे उन्हें दादाभाई ने लौटा दिया और सुझाया
कि कमेटी के नाम के पैसे और पत्र आपको सीधे सर विलियम वेडरबर्न के पास ही
भेजने चाहिए। दादाभाई स्वयं तो यथाशक्ति हमारी सहायता करते ही थे, परंतु उनका
कहना था कि कमेटी की प्रतिष्ठा तभी बढ़ेगी जब हम सर विलियम वेडरबर्न के द्वारा
ही काम लेंगे। मैंने यह भी देखा कि दादाभाई इतने बूढ़े होते हुए भी अपने
पत्र-व्यवहार में बड़े नियमित रहते थे। उन्हें कुछ अधिक न लिखना होता तो कम से
कम पत्र की पहुँच तो वे लॉटरी डाक से भेज ही देते थे और उसमें प्रोत्साहन की
एक पंक्ति अवश्य रहती थी। ऐसे पत्र भी वे स्वयं ही लिखते थे और उनकी नकल अपनी
टिश्यु-पेपर बुक में कर लेते थे।
पिछले एक प्रकरण मैं यह भी बता चुका हूँ कि हमने अपनी संस्था को 'कांग्रेस' का
नाम दिया था, परंतु हमारा इरादा अपने प्रश्नों को किसी एक पार्टी के प्रश्न
बनाने का कभी नहीं रहा। इसलिए दादाभाई जानें इस ढंग से हमारा पत्र-व्यवहार
दूसरी पार्टियों के लोगों के साथ भी चलता था। उनमें दो सज्जन मुख्य थे : एक सर
मंचेरजी भावनगरी और दूसरे सर विलियम विल्सन हंटर। सर मंचेरजी भागनगरी उस समय
ब्रिटिश पार्लियामेंट के सदस्य थे...
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